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आपके घर में चले आए तो 'नाथी का बाड़ा', फिर वोट मांगने के लिए क्यों जाते हो घर-घर? कुछ तो शर्म करों...

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राजस्थान के स्कूली शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा को नाथी का बाड़ा कहावत का अर्थ पता है या नहीं। लेकिन 9 अप्रैल को प्रिंसिपल स्तर के शिक्षकों को डांटते हुए डोटासरा ने नाथी का बाड़ा कहावत का इस्तेमाल किया था। शिक्षक पदोन्नति की मांग को लेकर डोटासरा के सीकर स्थित आवास पर पहुंचे थे।

 नाथी का बाड़ा की कहावत राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र से जुड़ी है। नाथी नाम की एक ग्रामीण महिला जरूरतमंद लोगों को पैसा उधार देती थी, लेकिन उसका कोई हिसाब नहीं रखती थी। बिना किसी भेदभाव के नाथी सभी जरूरतमंदों को पैसा देती थी। उस समय इतनी ईमानदारी थी कि भुगतान करते समय उधार की एक एक पाई चुकाई जाती थी।

चूंकि नाथी महिला के घर पर कोई भी व्यक्ति आ जा सकता था, इसलिए आगे चल कर मारवाड़ में नाथी का बाड़ा कहावत बन गई। नाथी के समय तो चुनाव की व्यवस्था भी नहीं थी, लेकिन फिर भी नाथी जरूरतमंद लोगों की मदद करती थी। 

सवाल उठता है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में एक मंत्री का घर नाथी का बाड़ा क्यों नहीं हो सकता? डोटासरा को यह समझना चाहिए कि सीकर के लक्ष्मणगढ़ विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं के वोट से वे विधायक और मंत्री बने हैं।

यदि लोग वोट नहीं देते तो डोटासरा मंत्री भी नहीं बनते। यदि डोटासरा विधायक नहीं होते तो उनके महलनुमा घर पर कोई नहीं आएगा। जब डोटासरा को सभी वर्ग के वोट देते हैं तो फिर शिक्षकों के घर आने पर एतराज क्यों? डोटासरा शिक्षा विभाग के मंत्री हैं, शिक्षक आएंगे ही। यदि डोटासरा को शिक्षकों की शक्ल से नफरत है तो उन्हें स्कूली शिक्षा मंत्री का पद छोड़ देना चाहिए।

गंभीर बात तो यह है कि शिक्षकों से बदतमीजी करने के बाद भी डोटासरा का रुख नरम नहीं है। डोटासरा अपने कथनों पर कायम है। असल में डोटासरा सत्तारूढ़ कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष भी हैं, इसलिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से लेकर प्रदेश प्रभारी अजय माकन भी कुछ कहने की स्थिति में नहीं है।

अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली सरकार पहले ही राजनीतिक संकट के दौर से गुजर रही है। गहलोत और माकन माने या नहीं, लेकिन डोटासरा की बदतमीजी का प्रतिकूल असर प्रदेश में 17 अप्रैल को होने वाले तीन उपचुनावों पर पड़ेगा। सुजानगढ़ सहाड़ा और राजसमंद में भी बड़ी संख्या में स्कूली शिक्षक हैं।

डोटासरा की 9 अप्रैल वाली बदतमीजी को प्रदेशभर के शिक्षक अपना अपमान मान रहे हैं। यदि तीनों उपचुनाव में शिक्षकों ने अपने अपमान का बदला लिया तो फिर डोटासरा की पार्टी के उम्मीदवारों का जीतना मुश्किल होगा। जबकि प्रदेशाध्यक्ष के नाते तीन उपचुनाव जीतने की जिम्मेदारी भी डोटासरा की ही है।




                                   

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