डॉ. कुमार विश्वास को यूं तो कौन नहीं जानता...फिर भी एक कवि का परिचय दिये बिना उसकी बात करना अच्छा नहीं लगता।
डॉ. कुमार विश्वास हिंदी के कुख्यात कवि है और उनकी कविताएं प्रेम पर आधारित रहती है यही कारण है कि वे युवाओं के सबसे प्रिय कवि हैं,
आज हम आपको कवि डॉ. कुमार विश्वास की वे पंक्तियाँ बताने जा रहें है जिसने देश के युवाओं को कुमार विश्वास का फैन बना लिया। कुमार विश्वास इतने लोकप्रिय है कि उन्हें देश में ही नहीं विदेशों में कवि सम्मेलनों के लिये बुलाया जाता है...और वे हिंदी में तो इतने विद्वान है कि जैसे उनके जुबां पर साक्षात मां सरस्वती बैठी हो, यंहा तक कि एक बार तो उन्हें गूगल हैडक्वार्टर भी बुलाया गया था।
तो चलिए डॉ. कुमार विश्वास की थोड़ी प्रंशसा के बाद बताते है आपको वे पंक्तियाँ जिससे कुमार विश्वास को युवाओं के दिलों में जगह मिली...
मगर धरती की बैचेनी को, बस बादल समझता है..
मैं तुझसे दूर कैसा हूँ, तू मुझसे दूर कैसी है...
ये तेरा दिल समझता है, या मेरा दिल समझता है....
मोहब्बत एक अहसासों की, पावन सी कहानी है.
कभी कबीरा दीवाना था, कभी मीरा दीवानी है..
यहांं सब लोग कहते हैं, मेरी आँखों में आँसू हैं...
जो तु समझे तो मोती है, जो ना समझे तो पानी है....
नजर में शोखियाँ लव पर, मोहब्बत का फ़साना है.
मेरी उम्मीद की ज़द में, अभी सारा ज़माना है..
कई जीते हैं दिल के देश पर, मालूम है मुझको...
सिकंदर हूँ, मुझे एक रोज खाली हाथ जाना है....
समंदर पीर का अन्दर है, लेकिन रो नहीं सकता.
ये आँसू प्यार का मोती है, इसको खो नही सकता..
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना, मगर सुन ले...
जो मेरा हो नहीं पाया, वो तेरा हो नहीं सकता....
मैं उसका हूँ, वो इस एहसास से इंकार करता है.
भरी महफ़िल में वो रूसवा, मुझे हर बार करता है..
यकीं है सारी दुनिया को, ख़फ़ा है मुझसे वो लेकिन...
मुझे मालूम है फिर भी मुझी से प्यार करता है....
जिसकी धुन पर दुनिया नाचे, दिल ऐसा इकतारा है.
जो हमको भी प्यारा है और, जो तुमको भी प्यारा है..
झूम रही है सारी दुनिया, जबकि हमारे गीतों पर...
तब कहती हो प्यार हुआ है, क्या अहसान तुम्हारा है....
पनाहों में जो आया हो, तो उस पर वार क्या करना.
जो दिल हारा हुआ हो, उस पे फिर अधिकार क्या करना..
मुहब्बत का मज़ा तो, डूबने की कशमकश में हैं...
जो हो मालूम गहराई, तो दरिया पार क्या करना....
बस्ती बस्ती घोर उदासी पर्वत पर्वत खालीपन.
मन हीरा बेमोल बिक गया, घिस घिस रीता तनचंदन..
इस धरती से उस अम्बर तक, दो ही चीज़ गज़ब की है...
एक तो तेरा भोलापन है, एक मेरा दीवानापन....
बहुत बिखरा बहुत टूटा, थपेड़े सह नहीं पाया.
हवाओं के इशारों पर, मगर मैं बह नहीं पाया..
अधूरा अनसुना ही रह गया, यूं प्यार का किस्सा...
कभी तुम सुन नहीं पायी, कभी मैं कह नहीं पाया....
दौलत ना अता करना मौला, शोहरत ना अता करना मौला.
बस इतना अता करना चाहे, जन्नत ना अता करना मौला..
हमें मालूम है दो दिल जुदाई सह नहीं सकते.
मगर रस्मे-वफ़ा ये है कि ये भी कह नहीं सकते..
जरा कुछ देर तुम उन साहिलों कि चीख सुन भर लो...
जो लहरों में तो डूबे हैं, मगर संग बह नहीं सकते....
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