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#Pollution - सरकार प्रदुषण के नाम पर किसानों को बदनाम करती है, असल गुनहगारों से तो डरती है?

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"वातावरण खराब करती है तेरे शहर की दीवारें ए दिल्ली, पर बदनाम तो तुम सिर्फ इस देश के किसानों को करती है!"


आज कल देश की राजधानी दिल्ली में पॉल्यूशन को लेकर काफी गहमागहमी है,और दिल्ली में पॉल्यूशन का स्तर बेहद ही खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका है। जब भी पॉल्यूशन की बात होती है तो सीधा आरोप किसानों पर डाल दिया जाता है और कंहा जाता है कि किसान पराली जलाते है इसलिए पॉल्यूशन बढ़ जाता है।

कमाल की बात तो ये है कि आप और हम भी यही सोचने लगते है और इसे ही सच मानने लगते है कि पॉल्यूशन किसानों के पराली जलाने की वजह से ही हो रहा है। क्योंकि हमें कोई ओर विकल्प ही नहीं सूझता कि आखिर पॉल्यूशन किसानों की वजह से नहीं बल्कि किसी ओर वजह से भी हो सकता है।



 क्या आपने कभी सोचा है कि हरियाणा, पंजाब और यूपी, राजस्थान के किसानों की पराली जलाने से दिल्ली में ही पॉल्यूशन क्यों होता है। और क्या ये सिर्फ किसानों की वजह से ही हो रहा है। या फिर और कोई भी कारण हो सकता है, लेकिन नेता और सरकारें सिर्फ आपके दिमाग में भर देते है कि पॉल्यूशन के लिए केवल और केवल किसान ही जिम्मेदार है और आप भी उऩ्ही को दोषी मानने लगते है।

पॉल्यूशन पर आधारित आज की हमारी इस स्पेशल रिपोर्ट में हम आपको बताएगें कि सडकों पर उडती धूल और वाहनों से धुं,धुं करके निकलता धुंआ सरकारों को प्रदुषित क्यों नहीं लगता। सरकारों के लिए किसान एक सॉफ्ट टारगेट होता है इसिलए सीधे आरोप किसानों पर लगा दिये जाते है। जो इसके असली गुनहगार है उन से सरकार पंगा क्यों नहीं लेती।
आपको ये रिपोर्ट जरूर देखनी चाहिए और महसूस करना चाहिए कि पॉल्यूशन के लिए क्या किसानों की पराली जलाना ही एकमात्र का कारण है या फिर हम सच्चाई देख ही नहीं पाते, सरकार को सडकों और ऊची इमारतों में ही डवलपमेंट क्यों दिखाई देता है किसानों के खेतों को हरे-भरे बनाने में क्यों नहीं। आज हम आपको ये भी बताएगें की राजधानी दिल्ली की हवा को जहरीली आखिर बना कौन रहा है। किसान या फिर कोई और ही है।



दिल्ली में बढ़ते प्रदुषण के लिए देश के किसान बदनाम हो चुके है लेकिन सच्चाई ये है कि प्रदुषण में किसानों की पराली जलाने का योगदान केवल 10 से 30 फीसदी ही है। हालाकि हम इसे सही नही ठहरा रहें लेकिन प्रदुषण के असली गुनाहगारों का सरकार नाम क्यूं नहीं लेती और सिर्फ किसानो का नाम लेकर उन्ही पर पुरे मुद्दे को हाइलाईट क्यों कर देती है।

 वायु प्रदूषण में किसका कितना योगदान है इसकी निगरानी करने वाली Ministry of Earth Sciences की एक संस्था है जिसका नाम है सफर (SAFAR), जिसका पूरा नाम है इंडिया सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी एंड वेदर फॉरकास्टिंग एंड रिसर्च, इसके मुताबिक दिल्ली और आसपास के इलाकों में दूषित हवा के लिए जिम्मेदार फैक्टर्स में पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाओं का 27 प्रतिशत योगदान है। वैसे इसके आंकड़े रोज बदलते रहते हैं,

इसके अलावा केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की भी रिपोर्ट बताती है कि दिल्ली के प्रदूषण के लिए सिर्फ पराली जिम्मेदार नहीं है, उनकी रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली के प्रदूषण में पराली का 25 फीसदी योगदान है।
दिल्ली के प्रदूषण पर वर्ष 2016 में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालॉजी (आईआईटी), कानपुर ने एक स्टडी की थी, इसकी रिपोर्ट दिल्ली सरकार और दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण कमेटी को सौंपी गई थी, यह रिर्पोट भी बताती है कि पॉल्यूशन के लिए सिर्फ किसान जिम्मेदार नहीं है।

सरकारों के पास पॉल्यूशन की ढेरों रिपोर्ट पड़ी है और सभी में बताया गया है कि दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण के लिए कौन कितना जिम्मेदार है, इन रिपोर्ट के बाद भी नेता सिर्फ पराली जलाने के लिए किसानों पर निशाना साध रहे हैं।

आईआईटी कानपुर की रिपोर्ट के मुताबिक
PM – 10 पीएम यानी पर्टिकुलेट मैटर, ये हवा में वो पार्टिकल होते हैं जिस वजह से प्रदूषण फैलता है इसमें सबसे ज्यादा 56 फीसदी योगदान सड़कों पर उडती धूल का है।
PM 2.5 -पीएम 2.5 का अर्थ है हवा में तैरते वह फाइऩ पार्टिक्लस यानी कि सूक्ष्म कण जिनका व्यास 2.5 माइक्रोन से कम होता है इसका हिस्सा प्रदुषण में 38 फीसदी है।

सरकारी एजेंसियां खुद कई बार साफ कर चूकी है कि दिल्ली के प्रदूषण के लिए सिर्फ पराली जिम्मेदार नहीं है, इसमें रोड साइड की धूल, कंस्ट्रक्शन और वाहन बड़े कारक हैं,

पराली जलाने पर पंजाब, हरियाणा और यूपी में हर साल किसानों पर एफआईआर होती है। प्रदूषण फैलाने पर ‘द एयर प्रीवेंशन एंड कंट्रोल एक्ट’ के तहत 500 से 15,000 रुपये तक जुर्मानें का प्रावधान है।

इसीलिए सबसे ज्यादा एफआईआर तो दिल्ली-एनसीआर और हरियाणा के उन नगर निगमों और डेवलपमेंट प्राधिकरणों के अधिकारियों पर होने चाहिए जिनकी कामचोरी से सड़कों पर धूल जमा है, लेकिन सरकार के लिए सॉफ्ट टारगेट सिर्फ किसान हैं इसलिए उन्हें परेशान किया जा रहा है।
सरकार विदेशों की तर्ज पर ऑटोमेटिक मशीनें मंगाकर धूल साफ करवा सकती है लेकिन सिस्टम में बैठा हर अधिकारी इतना स्वार्थी हो गया कि उसे अपने भविष्य तक की चिंता नहीं है।

अभी भी दिल्ली-एनसीआर में कंस्ट्रक्शन जारी है, रोड उखड़े हुए हैं, सडकों के चारों तरफ धूल उड़ रही है, उद्योगों में कोयले और पेटकोक का बेतहाशा इस्तेमाल हो रहा है, इसलिए अगर किसानों पर एफआईआर हो रही है तो इन लोगों पर भी एफआईआर होनी चाहिए, प्रदूषण फैलाने के लिए तो ये सब भी जिम्मेदार है।

 दिल्ली की हवा कितनी प्रदुषित हो चुकी है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दिल्ली में कोई बच्चा जन्म लेने से पहले ही 25 सिगरेट पीने से निकले धुएं के बराबर नुकसान सिर्फ मां के पेट में झेल रहा है। इसी तरह ट्रैफिक पुलिसकर्मी, आटो चालक या दूसरे वे लोग जो एक दिन में कम से कम आठ दस घंटे सड़क या उसके आसपास खुले में अपनी ड्यूटी देते हैं, वे सौ सिगरेट से निकले धुएं के बराबर प्रदूषण को सांस के जरिए अपने अंदर ले रहे हैं।

किसान पराली को न जलाया जाए तो उन्हें काफी नुकसान होता है। एक किल्ला तैयार करने पर यानी कि खेतों से निकला कचरे को जिसे हम पराली कहते है उसे दबाने के लिए एक किसान का खर्च छह से सात हजार रुपये बैठता है। ऐसे में हमारे देश के किसान आर्थिक रूप से इतने मजबूत नहीं है कि वो ये खर्चा वहन कर सकें।

 किसानों के खेतों से निकली चीजें बाजार में पहुंचते पंहुचते इतनी मंहगी हो जाती है कि जब वो किसान दुबारा उसे खरीदने जाता है तो वो उसे खरीद भी नहीं पाता। क्योंकि सरकारें किसानों से तो सस्ते में उनका माल खरीद लेती है लेकिन बाजार में उसी किसान को वही माल दो गुनी, तीन गुनी किमत पर मिलता है।
ऐसे में सरकारे हमेशा किसानों को ही हर चीज में मोहरा बना लेती है। ऐसे में भले ही किसान की फसल बिक तो रही है, लेकिन किसान पराली जलाने को मजबूर है।
किसानों को पता है कि पराली जलाने से पर्यावरण को नुकसान होता है। पराली का धुआं जानलेवा है। लेकिन उनके पास कोई विक्लप नही है। वह मजबूर है।

 सरकारें सड़को और ऊंची इमारतें बनाने के लिए तो इंफ्राटेक्चर और मशीनें डवलप कर लेती है लेकिन किसानों की समस्याएं सुलझाने के लिए उनसे सिर्फ बाते होती है और कुछ नही। यदि सरकार सच में किसानों की समस्याओं पर ध्यान दे तो सही में किसानों के भी अच्छे दिन आ सकते है।


पर्यावरण प्रदुषण की समस्या अकेले राजधानी दिल्ली में नही है बल्कि पूरे देश में है डब्ल्यूएचओ की 2014 से 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के 15 सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में भारत के 14 शहर शामिल हैं। जबकि इनमें अकेले उत्तर प्रदेश के छह शहर हैं।

 कानपुर सबसे टॉप पर है। और दिल्ली एनसीआर का दूसरे नंबर पर है। इनके अलावा फरीदाबाद, वाराणासी, लखनऊ, आगरा, मुजफ्फरपुर, जयपुर, जोधपुर, पटना, यंहा तक की जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर भी इस लिस्ट में शामिल है।

 WHO की इस लिस्ट में कुछ सालों पहले राजधानी बींजिग सहित चीन के कई शहर शामिल थे। बीजिंग की गिनती दुनिया के सबसे प्रदूषित शहर के रूप में होती थी, लेकिन चीन की सरकार ने इस समस्या को दूर करने के लिए कई प्रभावी कदम उठाए, जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। और अब वंहा का वातावरण में भी सुधार हो रहा है।

 सोचिए यदि चीन की सरकार भी भारत की तरह ऐसे ही एक-दूसरे पर आरोप लगाती रहती है कि पॉल्यूशन आपकी वजह से हो रहा है तो आज बींजिग भी दिल्ली की तरह ही होता।



राजनीतिक दल चुनावों में विकास के बडे–बडे वादें करते है लेकिन वे अपने एजेंडे में कभी भी पर्यावरण संबंधी मुद्दा नहीं रखते। देश में हर जगह, हर तरफ हर पार्टी विकास की बातें करती है, लेकिन ऐसे विकास का क्या फायदा जो लगातार विनाश को आमंत्रित करता है। ऐसे विकास को क्या कहें जिसकी वजह से सम्पूर्ण मानवता का अस्तित्व ही खतरे में पड़ रहा हो।
अब वक्त आ गया है कि जनता जागरूक हो और नेताओं से प्रदुषण की जगह साफ हवा, साफ पानी और अच्छा स्वास्थ्य की मांग करें। अब जरूरी हो गया है कि जनता नेताओं को इस बात के लिए बाध्य करना चाहिए कि वे पर्यावरण को राजनीतिक मुद्दा बनाएं और इसे आम आदमी की प्राथमिकता सूची में सबसे ऊपर रखें। यकीनन अब भी अगर देश की जनता ने इस समस्या को गंभीरता से नहीं लिया तो आगे आने वाला समय और भयावह होगा।



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