गणगौर सौभाग्य बढ़ाने का अनुष्ठान है। यह भव्यता और दिव्यता का उत्सव है। वसंत की सुहानी हवाओं के बीच होली का हरापन खत्म भी नहीं होता और माता गणगौर पूजा के गीतों की मधुर ध्वनि कानों में गूंजने लगती है। छोटी लड़कियों से लेकर युवा महिलाएं और सौभाग्यशाली महिलाएं, अलसुबह उठेंगी और बाग बगीचों में हरी दूब तोडती दिख जाएंगी।
रंग-बिरंगे परिधानों में सजी सुहागिनी पूजा की थाली पर कुमकुम, गंध, अक्षत, पुष्पमाला और काजल-मेहंदी के साथ गणगौर की पूजा करने गई जाती हैं। कुछ स्थानों पर, गणगौर पूजा में नवविवाहित महिलाओं की एकाग्रता इतनी बढ़ गई है कि नवल पिया को भूलकर, उनका मन निशदिन माता गणगौर में रहता है। अगर ऐसा है, तो क्यों नहीं? भगवती की अलौकिक सुंदरता का अवतार पृथ्वी पर गणगौर की पूजा करने वाली महिलाओं में स्वयं आ जाता है। देवी खुद कहती हैं कि महिलाओं के लिए मेरा सौभाग्य है। आकाश की गणगौर पृथ्वी पर कन्याओं में स्वतः विराजमान इसीलिए भी हो जाती है क्योंकि कन्या से पवित्र धरती पर और कुछ नहीं है।
गौरी, पद्म, शची, मेधा, सावित्री, विजया, जया, देवसेना, स्वधा, स्वाहा, माता, लोकमाता, धृति, विरमानी, तुष्टि और कुलदेवी के सोलह रूपों के साथ गणगौर की पूजा विशेष रूप से चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन की जाती है। ये 16 माताएँ हैं, जिनकी पूजा हर वृद्धिकारिका यानि मांगलिक अवसर पर की जाती है। ज्योतिष के अनुसार, देवी माता गौरी तृतीया तिथि की अध्यक्षता करने वाली देवता हैं, जो एक पखवाड़े आती हैं।
माता गौरी की पूजा से जानकी को मिला सुफल आशीर्वाद ही था कि आज भी संसार में दाम्पत्य जीवन की सबसे बड़ा आदर्श श्रीराम और माता सीता की अनुपमेय जोड़ी है। जहां राम केवल सीता के लिए तथा सीता सिर्फ राम के लिए है और दानेां एक—दूसरे के लिए। गणगौर स्त्री-पुरुष के आपसी संबंधों में पवित्रता की याद दिलाने वाला पर्व है। यह समाज की व्यवस्था में नर-नारी के ‘संबंध’ की पवित्रता पर जोर देने का उत्सव है। कहीं पांव न फिसले, जिससे चरित्र गिरे। चारित्रिक पतन को रोकने का अचूक अनुष्ठान है गणगौर।
प्रातः सुमंगल वेला में गणगौर पूजन करने जाती कुमारियां और सौभाग्यवती स्त्रियां माता गणगौर के सुमधुर गीत गाती हैं- खोल ए गणगौर माता, खोल ए किवाड़ी। बारै ऊभी थाने पूजन हाली।। आवाहन के बाद माटी के बने ईसर-गणगौर को पूजकर स्त्रियां समवेत स्वरों में मधुर कंठ से एक लय में गाती है-गौर गौर गणपति ईसर पूजे पार्वती,पार्वती का आला गीला गौर का सोना का टीका।।इस लंबे लोकगीत के सोलह बार गान के बाद ढेरों लोकगीतों से गणगौर को प्रसन्न कर वर प्राप्ति की साधना संपन्न होती है। महिलाओं के लिए गणगौर विशेष उत्सव है – पूजण द्यो गणगौर, भंवर म्हानै पूजण द्यो गणगौर। एजी म्हांकी सहेल्यां पूजै छै गणगौर।।
इस पर्व पर गणगौर की सवारी का निकलना इस त्योहार के उल्लास में कई गुना बढ़ोतरी कर देता है। राजस्थान से विभिन्न राजपरिवारों में आज भी गणगौर की मनमोहक सवारी निकाली जाती है। अनेक कवियों ने इस सवारी का ऐसा सुंदर वर्णन किया है, जिससे इस त्योहार की प्राचीनता और सुदृढ आध्यात्मिकता प्रकट होती है।
No comments:
Post a Comment