आपको बता दें कि समाचार एजेंसी एएनआई ने पहले ममता बनर्जी की जीत का दावा किया था, लेकिन रविवार शाम को ममता बनर्जी ने खुद प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपनी हार स्वीकार कर ली। देर रात चुनाव आयोग ने ममता बनर्जी की हार का औपचारिक ऐलान कर दिया।
तृणमूल छोड़कर भाजपा में गए शुभेंदु अधिकारी ने 1956 वोट से हराया। रात 11 बजे आए नतीजों के मुताबिक शुभेंदु अधिकारी को कुल 1 लाख 10 हजार 764 वोट मिले। जबकि ममता बनर्जी को 1 लाख 8 हजार 808 वोट ही मिल सके। नंदीग्राम में कुल 2 लाख 28 हजार 405 लोगों ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया था। इनमें 2044 डाक मतपत्र शामिल थे।
ममता बनर्जी हारने के बाद भी क्या मुख्यमंत्री बनी रहेगी
ममता बनर्जी नंदीग्राम से हार गई हैं, तो सवाल उठता है कि क्या ममता बनर्जी मुख्यमंत्री के रूप में जारी रहेंगी?
हालांकि, चुनाव विश्लेषकों का कहना है कि वह एक बार फिर पश्चिम बंगाल की बागडोर जरूर संभालेंगी। अगर हम बात करें, तो भारत के तीन सबसे अधिक आबादी वाले राज्यों के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (बिहार), योगी आदित्यनाथ (उत्तरप्रदेश), और उद्धव ठाकरे (महाराष्ट्र), अपने-अपने राज्यों के विधान परिषदों के सदस्य हैं, जबकि विधान सभा का हिस्सा नहीं है।
सीधे शब्दों में कहें तो उन्होंने मुख्यमंत्री बनने के लिए विधानसभा चुनाव नहीं जीता है। इनमें से, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एकमात्र मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने 36 साल पहले विधानसभा चुनाव लड़ा था। आपको बता दें कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कभी आम चुनाव नहीं लड़ा। हालाँकि, ममता बनर्जी के साथ ऐसा नहीं है क्योंकि पश्चिम बंगाल में विधान परिषद नहीं है। हालांकि, तृणमूल कांग्रेस ने ऐसा ढांचा बनाने की बात कही है।
ममता बनर्जी के पास विधायक बनने के लिए 6 महिने
अनुच्छेद 164 कहता है कि एक मंत्री जो लगातार छह महीने तक राज्य की विधायिका से संबंधित नहीं है, इस समय सीमा की समाप्ति के बाद मंत्री नहीं बन सकता है। इसका मतलब है कि ममता बनर्जी के पास विधायक बनने के लिए 6 महीने का समय हैं। पश्चिम बंगाल में, क्योंकि कोई विधान परिषद नहीं है, ममता बनर्जी को 6 महीने के भीतर एक खाली सीट से नामांकन दाखिल करना होगा और उपचुनाव जीतना और एक विधायक बनना होगा।
अनुच्छेद 164 (4) - Article 164 (4) Of Indian Constitution
संविधान के अनुच्छेद 164 में यह प्रावधान है कि यदि कोई व्यक्ति मंत्रिमंडल में मुख्यमंत्री पद समेत किसी पद पर नियुक्त होता है तो वह छह महीने तक इस पद पर रह सकता है अर्थात् यदि उसे पद पर बने रहना है तो उसको छह महीने के भीतर या तो विधान सभा सदस्य अथवा विधान परिषद् का सदस्य बनना आवश्यक होगा।
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