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सचिन पायलट के मर्ज का इलाज प्रियंका गांधी के पास नहीं जयपुर में अशोक गहलोत के पास है ?

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मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी से मुलाकात करने के लिए राजस्थान के पूर्व डिप्टी सीएम और असंतुष्ट नेता सचिन पायलट दिल्ली पहुंच गए हैं। लेकिन सवाल उठता है कि क्या प्रियंका गांधी सचिन पायलट के मर्ज का इलाज कर पाएंगी? सब जानते हैं कि पायलट का मर्ज राजस्थान में कांग्रेस की सरकार से जुड़ा हुआ है। पायलट का कहना है कि विधानसभा चुनाव में हमने जो वायदे किए थे, उन्हें अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली सरकार ने पूरे नहीं किए हैं। संघर्ष करने वाले कार्यकर्ताओं को भी सत्ता में भागीदारी नहीं मिली है।

पायलट ने गत वर्ष अगस्त माह में जब इन्हीं मांगों को लेकर 18 विधायकों के साथ दिल्ली में डेरा जमाया था, तब जयपुर में पायलट को प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष और डिप्टी सीएम केक पद से बर्खास्त कर दिया था। यह सही है कि पिछले एक वर्ष से पायलट ने अपने साथ सभी 18 विधायकों का समर्थन बनाए रखा है। वहीं मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी अपने पास 110 विधायकों का जुगाड़ बनाए रखा है।

गहलोत समर्थकों का कहना है कि यदि पायलट अपने 18 विधायकों के साथ अलग भी रहते हैं तो भी गहलोत के नेतृत्व में सरकार चलती रहेगी। लेकिन कांग्रेस का नेतृत्व करने वाला गांधी परिवार नहीं चाहता है कि सचिन पायलट कांग्रेस में असंतुष्ट रहे या फिर अलग हो जाए। लेकिन गांधी परिवार में ही सबसे बड़ी समस्या राहुल गांधी को लेकर है। सूत्रों की मानें तो बदली हुई परिस्थितियों में राहुल गांधी पूरी तरह सीएम अशोक गहलोत के साथ खड़े हैं।

राहुल गांधी अब सचिन पायलट से कोई बात भी नहीं करना चाहते हैं। भले ही दिल्ली में पायलट की मुलाकात प्रियंका गांधी से हो जाए, लेकिन पायलट के मर्ज का इलाज तो जयपुर में अशोक गहलोत के पास ही होना है। सवाल उठता है कि क्या सीएम गहलोत पायलट के समर्थकों को संगठन और सरकार में कोई महत्व देंगे? पायलट भले ही मुख्यमंत्री के पद पर दावा न करें, लेकिन उनकी नजर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के पद पर लगी हुई है। पायलट चाहेंगे कि उनके समर्थक विधायकों को मंत्री भी बनाया जाए। निगम और अन्य सरकारी संस्थानों में भी पायलट के समर्थकों की नियुक्ति की जाए।

सवाल यह भी है कि जब सीएम गहलोत के पास 200 में से 110 विधायकों का जुगाड़ है तब वे पायलट की शर्तों को क्यों मानेंगे? सूत्रों के अनुसार गहलोत का खेमा तो चाहता ही है कि पायलट कांग्रेस से अलग हो जाए। यदि पायलट कांग्रेस में बने रहते हैं, तो ढाई वर्ष बाद होने वाले विधानसभा के चुनाव में टिकटों का बंटवारा हो जाएगा। गहलोत के समर्थक चाहते हैं कि 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की कमान पूरी तरह अशोक गहलोत के पास रहे। पायलट की ताजा राजनीतिक गतिविधियों को देखते हुए सीएम गहलोत ने भी अपने समर्थक विधायकों को सीएमआर में बुलाना शुरू कर दिया है। गहलोत एक एक विधायक से व्यक्तिगत तौर पर मिल रहे हैं। विधायकों से उनकी समस्याएं पूछी जा रही है। इसी सिलसिले में 11 जून की रात को निर्दलीय विधायक ओम प्रकाश हुड़ला और सुरेश टांक ने सीएमआर में सीएम गहलोत से मुलाकात की।

दोनों विधायकों ने सीएम को भरोसा दिलाया कि यदि इस बार विधायकों का शिविर लगेगा तो वे गहलोत के शिविर में ही रहेंगे। यहां यह उल्लेखनीय है कि गत वर्ष अगस्त में ये दोनों निर्दलीय विधायक दिल्ली चले गए थे। हालांकि दोनों विधायक पायलट वाले शिविर में नहीं थे, लेकिन इन दोनों ने अलग ठिकाना बना लिया था। हुड़ला और टाक के साथ साथ निर्दलीय विधायक खुशवीर सिंह जोरावर के खिलाफ भी तब पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर लिया था। हालांकि पायलट के वापस आने पर ये तीनों विधायक भी सीएम के समर्थन में आ गए थे। तब सीएम ने भी माना कि इन तीनों विधायकों को लेकर गलतफहमी हो गई थी।

कहा जा सकता है कि इस बार ये तीनों निर्दलीय विधायक गहलोत के पास खड़े हैं। सीएमआर में पिछले दो दिन से छोटे दलों और कांग्रेस के विधायकों के आने का सिलसिला लगा हुआ है। इस बीच राजस्थान के प्रभारी अजय माकन ने एक बार फिर मंत्रिमंडल के विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियों का शगुफा छोड़ दिया है। लेकिन राजस्थान में कांग्रेस की राजनीति में वो ही होगा जो सीएम गहलोत चाहेंगे। गहलोत चाहेंगे तभी सचिन पायलट संतुष्ट होंगे। राजस्थान में गांधी परिवार भी पूरी तरह गहलोत पर निर्भर है।

कांग्रेस में जब भी असंतुष्ट गतिविधियों बढ़ती है तब भाजपा में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की सक्रियता बढ़ जाती है। राजे पिछले कुछ दिनों से भाजपा और निर्दलीय विधायकों को फोन कर हाल चाल पूछ रही हैं। यह बात अलग है कि राजे जब मुख्यमंत्री थी तब मंत्रियों को भी मिले के लिए कई दिनों तक इंतजार करना पड़ता था। लेकिन अब जब पूर्व मंत्रियों और विधायकों के पास सीधे वसुंधरा राजे का फोन पहुंच रहा है,तो वे भी गदगद हैं। सब जानते हैं कि प्रदेश में वसुंधरा राजे अपनी ढपली अलग ही बजा रही हैं। राजे की राजनीतिक सक्रियता का सबसे ज्यादा फायदा सीएम अशोक गहलोत को ही होता है।

 

 

 

                           

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