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रमजान - मुस्लिम समुदाय का पवित्र महीना, क्या है सहरी और इफ्तार?

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रमजान एक प्रमुख इस्लामी धार्मिक उत्सव है जो मुस्लिम समुदाय में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह हिजरी कैलेंडर के नौवें महीने में मनाया जाता है, जिसे रमजान माह कहा जाता है। रमजान का अर्थ है "तापमान और घातकता से दूर होना"। इस माह में मुस्लिम लोग रोजा रखते हैं, जिसका अर्थ होता है दिन भर के वक्त में भोजन, पानी, और यौन संबंधों से पर
हेज करना। रोजा तो वह है जिसमें इंसान अपने मस्तिष्क, शरीर, और आत्मा को नियंत्रित करके अपने ईश्वर की खोज करता है।

रमजान का महीना ईश्वर के निकटता के लिए भक्ति, उत्तरदायित्व, और शुद्धता की भावना से भरा होता है। इसके अलावा, यह समय दानशीलता, दया, और मानवता के प्रति अपने साझा उत्साह को बढ़ाता है। रमजान के माह में लोग सेहरी और इफ्तार का आनंद लेते हैं। सेहरी एक सुबही भोजन है, जो रोजेदार अपने रोजे की शुरुआत के लिए करते हैं, और इफ्तार शाम को रोजे को तोड़ने का समय है।

रमजान के महीने में मुस्लिम समुदाय के लोग अल्लाह की इबादत, ध्यान, और ध्यान में लगे रहते हैं। इस धार्मिक उत्सव के दौरान, लोग अपने आत्मा को शुद्ध और उच्च स्तर पर पहुंचाने के लिए प्रार्थना, किताब, और दान के माध्यम से अपनी धार्मिक दिशा की दिशा में कदम बढ़ाते हैं। इस पवित्र माह का महत्व अत्यधिक होता है क्योंकि इसमें अल्लाह ने कुरान को नज़िल किया था, जो मुस्लिम समुदाय के लिए आदर्श और मार्गदर्शक धर्म ग्रंथ है।

रमजान के इस महत्वपूर्ण माह के दौरान, मुस्लिम समुदाय के लोग आत्मसात करते हैं, संदेह और अन्याय का सामना करते हैं, और दानशीलता और प्रेम की भावना को बढ़ावा देते हैं। यह उत्सव उनकी भक्ति, श्रद्धा, और सामाजिक सद्भावना को मजबूत करता है और उन्हें आपसी समझ और प्यार की भावना से जोड़ता है। अंत में, रमजान महीना एक महत्वपूर्ण संदेश के साथ आता है: भगवान ने सभी लोगों को भाईचारे और एकता के लिए मिलकर रहने का आदेश दिया है।

रमजान के दौरान रोजा रखने के नियम रोजा रखने का मतलब सिर्फ भूखे-प्यासे रहना नहीं है, बल्कि आंख, कान और जीभ का भी रोजा रखा जाता है। यानी इस दौरान न बुरा देखें, न बुरा सुनें और न ही किसी को बुरा कहें। साथ ही इस बात का भी ध्यान रखें कि आपके द्वारा बोली गई बातों से किसी की भावनाओं पर ठेस न पहुंचे। रमजान के महीने में कुरान पढ़ने का अलग ही महत्व होता है। हर दिन की नमाज के अलावा रमजान में रात के वक्त एक विशेष नमाज भी पढ़ी जाती है, जिसे तरावीह कहते हैं। रमजान का महत्व रमजान का रोजा 29 या 30 दिनों का होता है। इस्लाम धर्म में बताया गया है कि रमजान के दौरान रोजा रखने से अल्लाह खुश होते हैं और सभी दुआएं कुबूल करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस महीने की गई इबादत का फल बाकी महीनों के मुकाबले 70 गुना अधिक मिलता है। चांद के दिखने के बाद से ही मुस्लिम समुदाय के लोग सूरज के निकलने से पहले सहरी खाकर इबादतों का सिलसिला शुरू कर देते हैं। सूरज निकलने से पहले खाए गए खाने को सहरी कहा जाता है और सूरज ढलने के बाद रोजा खोलने को इफ्तार कहा जाता है। सहरी? रोजे की शुरुआत सुबह सूरज निकलने से पहले फज्र की अजान के साथ होती है। इस समय सहरी ली जाती है। रमजान माह में रोजाना सूर्य उगने से पहले खाना खाया जाता है। इसे सहरी नाम से जाना जाता है। सहरी करने का समय पहले से ही निर्धारित कर दिया जाता है। सभी मुस्लिम लोगों को रोजा रखना अनिवार्य माना जाता है, लेकिन बच्चों और शारीरिक रूप से अस्वस्थ लोगों को रोजा रखने के लिए छूट दी गई है। इफ्तार? दिनभर बिना खाए-पिए रोजा रखने के बाद शाम को नमाज पढ़ी जाती है और खजूर खाकर रोजा खोला जाता है। यह शाम को सूरज ढलने पर मगरिब की अजान होने पर खोला जाता है। इसी को इफ्तार नाम से जाना जाता है। इसके बाद से सुबह सहरी से पहले व्यक्ति कुछ भी खा पी सकता है।

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