पिछले महीने, तुर्की, ईरानी और पाकिस्तानी (Turkey-Iran-Pakistan) अधिकारियों ने इस्तांबुल-तेहरान-इस्लामाबाद रेलवे नेटवर्क (Istanbul-Tehran-Islamabad Railway Network) को फिर से शुरू करने पर सहमति व्यक्त की। 2009 में शुरू किए गए इस प्रोजेक्ट का ट्रायल रन हो चुका है।
6,500 किलोमीटर लंबी इस रेलवे लाइन का 1,950 किलोमीटर लंबा हिस्सा, ईरान से 2,600 किमी और पाकिस्तान से 1,990 किलोमीटर दूर से गुजरेगा। अधिकारियों का कहना है कि इस्तांबुल-तेहरान-इस्लामाबाद यानी आईटीआई रेल नेटवर्क को बहुत जल्द चालू किया जाएगा।
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इसके जरिए चीन इलाके में कनेक्टिविटी का इस्तेमाल करना चाहेगा। अगर चीन एशिया में अमेरिकी भूमिका को हथियाने में सफल होता है, तो उसे क्षेत्रीय देशों के बीच अधिक सहयोग की आवश्यकता होगी।
हालाँकि, इस यात्रा की सुरक्षा को लेकर कुछ सवाल उठ रहे हैं। क्योंकि आईटीआई ऐसे क्षेत्रों से होकर गुजरेगी जो इस्लामिक चरमपंथियों के चंगुल में हैं। इस्लामिक स्टेट का चरमपंथी गुट पाकिस्तान के पश्चिमी बलूचिस्तान प्रांत और ईरान में विशेष रूप से सक्रिय है। इसके साथ ही, बलूचिस्तान के अलगाववादी भी नियमित रूप से प्रांत में सुरक्षा बलों को निशाना बनाते हैं।
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यह प्रांत चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के संदर्भ में बहुत महत्वपूर्ण है। सुरक्षा जोखिम बहुत बड़ा है। आईटीआई आसानी से चरमपंथियों का निशाना बन सकता है।
पाकिस्तान इस महंगी परियोजना के लिए पैसा कहां से लाएगा
पाकिस्तान इस महंगी परियोजना के लिए पैसा कहां से लाएगा, जो एक बड़े आर्थिक संकट का सामना कर रहा है? देश की स्थानीय रेल सेवा खस्ताहाल है और बलूचिस्तान में रेलवे लाइनों को सुधारना एक बड़ी चुनौती होगी।
हालाँकि, मीडिया रिपोर्टों में यह कहा जा रहा है कि चीन केवल इस परियोजना को राजनीतिक समर्थन देना चाहता है। चीन चाहता है कि पाकिस्तान और तुर्की इस परियोजना की लागत वहन करें।
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