Post Top Ad

छिपकली के परिवार का ये प्राणी, जिसे Monitor Lizard कहते हैं, जानिए इसके बारें में...

Share This


(Indian Monitor Lizard (Varanus bengalensis) गोहेरा, गोयरा, घ्योरा, गोह, विषखोपड़ी और बिचपड़ी आदि अनेक नामों से जाना जाने वाला यह प्राणी एक बड़ी छिपकली के परिवार का है जिसे Monitor Lizard कहते हैं। इन छिपकलियों की करीब 70 प्रजातियां हैं जो अफ्रीका, दक्षिण एशिया और आस्ट्रेलिया तक पाई जाती हैं। भारत में इस की चार प्रजातियां मिलती हैं Bengal, Yellow, Water और Desert Monitor

अधिकतर नजर आने वाली नस्ल Bengal Monitor है। एक पूर्ण वयस्क को गोह और छोटे बच्चों को गोहेरा कहते हैं। यह एक विष रहित सरीसृप है। दरअसल भारत में पाई जाने वाली कोई भी छिपकली की प्रजाति विषैली नहीं है। इस निरीह और बेहद शर्मीले प्राणी के मुंह में तो दांत भी नहीं होते। यह अपने शिकार को सीधे निगलता है। हां, मुंह के पिछले हिस्से में बहुत बारीक दांत जैसी बनावट होती है जो बड़े शिकार को निगलने में सहायक होती है।
 
आज यह चारों प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर खड़ी हैं। कारण। वही पुराने हैं... मनुष्य का लालच और अंधविश्वास।
खाल से बहू मूल्य चमड़ा, मांस से बीमारियों का इलाज एवं खून और हड्डियों से कामोत्तेजक औषधि। यह सब तो समझ आता है पर क्या आप जानते हैं सबसे अधिक क्या बिकता है?


इस अभागे प्राणी के नर जननांग। सही पढ़ा आपने। अंधविश्वास यह है कि नर गोह के जननांग को सुखा कर चांदी के डिब्बे में रखने से घर में लक्ष्मी आती है। इस जननांग को "हथा जोड़ी" नाम से पेड़ की जड़ बता कर बेचा और खरीदा जाता है। और यह लाखों करोड़ों का गोरखधंधा सरेआम चलता है। और सबसे घृणित अंधविश्वास यह कि जननांग निकालते समय गोह जिंदा होनी चाहिए।
 
एक सोची समझी साज़िश के तहत यह भ्रांति फैलाई गई कि गोह और गोहिरा अत्यंत विषैले हैं। इतने विषैले कि इसके काटते ही तुरन्त मृत्यु हो जाती है। संपेरो और वन्य जीव हत्यारों के इस जाल में तकरीबन सारी ग्रामीण जनता फंस गयी। अनपढ़ लोग क्या पढ़े लिखे भी गोहेरा को झूठी कहानियों से खलनायक सिद्ध करते हैं| बाकी काम गोह की शक्ल सूरत, चाल ढाल और सांप जैसी लम्बी चिरी हुई नीली जीभ पूरा कर देती है।

 
विश्व में बनने वाले हाथ घड़ी के पट्टे का व्यापार 2500 करोड़ सालाना है जिसमें 90% गोह और बाकी छिपकलियों के चमड़े से बनते हैं। आधे से अधिक ढोलक भी इसी चमड़े से बजते हैं। औसतन भारत में एक वर्ष में पांच लाख गोह मारी जाती हैं।गलत धारणा के शिकार एक निर्दोष प्राणी का एसा हाल निंदनीय है।
 
और बदले में ये प्राणी किसान के खेतों से टनों कीड़े मकोड़े और विनाशक जन्तु खा कर लाखों करोड़ों का अनाज बचाते हैं।
आइए अपने अस्तित्व से झूझते इस निर्दोष, निरीह एवं अभागे किसान मित्र को बचाएं। ज़रूरत है केवल जनता और किसानों को सत्य से अवगत कराने की।
 
 
History
 

No comments:

Post Bottom Ad