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बुढ़ापे में रखें इस तरह ध्यान तो हमेशा रहेंगे स्वस्थ, मानसिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए अपनाए ये तरीके...

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बुढ़ापे में भी व्यक्ति स्वस्थ रह सकता है बशर्ते हम अपनी सीमाएं का ध्यान रखना पड़ेगा। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि व्यक्ति बुढ़ा हो गया है तो बीमारियां तो होगी ही, लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है यदि हम अपने शरीर का अच्छे से ध्यान रखें तो ऐसी कोई बीमारी नहीं जो आपको तकलीफ दें...इसकी के चलते आज हम अपने इस लेख के माध्यम से बताएं कि व्यक्ति को बुढ़ापे में कैसे अपना ध्यान रखना चाहिए...

शरीर और मानसिकता को संतुलन रखें

उम्र बढ़ने के साथ आदमी का संतुलन गड़बड़ाने लगता है। गिरने की आशंका बढ़ जाती है। मान लें कि 65 वर्ष वालों में 35 फीसदी तो 80 वर्ष से ऊपर इसकी आशंका 50 फीसदी तक हो जाती है

ऐसा कई कारणों से होता है। घुटनों में ऑस्टियोआर्थराइटिस (गठिया), मांसपेशियों की ताकत में कमी, मस्तिष्क की नसों में रक्त का प्रवाह कम होना, आंखों की रोशनी कम होना आदि कारण हैं, विभिन्न दवाओं का सेवन भी एक बड़ा कारण हो सकता है।


यह माना जाता है कि अगर घर में कोई बूढ़ा व्यक्ति है, तो वह कुछ रुक-रुक कर बातचीत भी करेगा। गुमराह करने वाली बात, पथभ्रष्ट व्यवहार… लेकिन यह सही धारणा नहीं है। उम्र बढ़ने के साथ, यह कुछ भी नहीं है कि एक आदमी अकड़ जाएगा। हां, इस उम्र में अकेलेपन, तनाव, अवसाद आदि की संभावना अधिक होती है, जिसे सामाजिक और पारिवारिक स्तर पर सक्रिय रहकर रोका जा सकता है। सबसे अच्छा संबंध रखें। सामाजिक कार्यों से जुड़ेंगे। वे आपकी मानसिक गतिविधि को बढ़ाएंगे।


यदि घर का एक बुजुर्ग सदस्य अचानक गुमराह होकर बात करना शुरू कर देता है, आसपास की चीजों को नहीं पहचानता है, मानसिक रूप से अचानक गलत हो जाता है, तो यह एक गंभीर बीमारी का लक्षण है। निमोनिया, खून में शुगर की कमी, यह स्ट्रोक आदि का लक्षण भी हो सकता है। बुढ़ापे में, यदि आपको यादाश्त कम होने लगे, व्यवहार में बदलाव आये, तो यह डिमेंशिया हो सकता है। मानसिक लक्षणों को एक विश्राम के रूप में अनदेखा न करें।

यह बुढ़ापे की आम समस्या है, जिसे बूढ़े लोग शर्मिंदगी और शर्म के साथ छिपाते रहते हैं। खासकर महिलाओं के बीच। कपड़ों में ही मूत्र छोड़ा जाता है...पूरा या कुछ। खांसने, छींकने या हंसने पर भी कई बार ऐसा हो सकता है। अगर घर पर कोई बूढ़ा व्यक्ति है, तो आपको इसके बारे में स्पष्ट रूप से पूछना चाहिए।

यह किसी भी प्रोस्टेट रोग, मूत्र संक्रमण, ढीले गर्भाशय, पथरी, पेल्विक मांसपेशियों के नुकसान, किसी भी न्यूरोलॉजिकल रोग आदि का लक्षण हो सकता है और इन सब बीमारियों की या तो दवाएं मौजूद हैं या फिर इनका आसान सा ऑपरेशन भी हो जाता है।

वृद्ध लोग अक्सर बैठे या लेटे रहते हैं। उनकी त्वचा भी नाजुक होती है। बैठे या लेटे हुए, जब हड्डियों का दबाव लंबे समय तक त्वचा पर पड़ता है, तो इस दबाव के स्थान पर घाव बन जाते हैं।  पीठ पर, एड़ी पर, एड़ियों पर। ये घाव आसानी से ठीक नहीं होते हैं। यदि यह बिगड़ता है, तो यहां संक्रमण पूरे शरीर में फैल सकता है और घातक सेप्टिसीमिया का कारण बन सकता है। जख्म होने पर घाव बहुत गहरे भी हो सकते हैं। इसलिए लगातार एक ही जगह पर बैठे या लेटे नहीं। अगर घाव हो गया है, तो उसे पकने से बचाएं, ड्रेसिंग आदि करवाएं।

जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, बहुत सी चीजें होती हैं जो दुर्घटनाओं को बढ़ावा देती हैं। संतुलन थोड़ा गड़बड़ हो सकता है। आंखों की रोशनी कम हो सकती है। शरीर और मस्तिष्क की सजगता सुस्त हो जाती है जिसके कारण गाड़ी चलाते समय प्रतिक्रिया समय बढ़ जाता है। समय पर तय नहीं कर सका कि क्या ब्रेक मारा जाए कि त्वरक को दबाया जाए! इस उम्र में अधिक सतर्क रहने की जरूरत है। एक हेलमेट पहनना चाहिए यहां तक ​​कि इस उम्र में सिर की हल्की चोट मस्तिष्क को काफी हद तक चोट पहुंचा सकती है।

व्यायाम करना बिल्कुल ना छोडें

मानसिक और शारीरिक कार्य न छोड़ें। रोजाना कम से कम पंद्रह मिनट तक टहलें। आप साइकिल की सवारी भी कर सकते हैं। स्विमिंग कर सकते हैं। हमेशा एक्टिव रहें, यदि आप ऐसा करते हैं, तो आप मन से भी स्वस्थ रहेंगे। यदि आप इसे अकेले नहीं कर सकते हैं तो एक समूह बनाएं और व्यायाम करें।

खानपान पर रखें विशेष ध्यान 

अक्सर पूछा जाता है कि बुढ़ापे में क्या खाएं या क्या न खाएं। उम्र बढ़ने के साथ कैलोरी की जरूरत कम होती जाती है। खुराक भी कम हो जाती है। अगर आप अपनी युवावस्था में जितना खाते हैं उतना ही खाते हैं, तो वजन बढ़ने का डर रहता है और अगर आप कम खाते हैं तो कुपोषण का खतरा होता है।

यदि बुढ़ापे में प्यास कम हो जाती है, तो निर्जलीकरण (डिहाइड्रेशन) का खतरा भी होता है। लेकिन पानी, प्यास न लगने पर भी पर्याप्त मात्रा में पीते रहें। इस उम्र में विटामिन डी और बी और कैल्शियम की कमी भी आम है। आहार विशेषज्ञ से समय-समय पर सलाह लेते रहें।

समय-समय पर डॉक्टर की सलाह और जांच कराते रहें

यदि पहले से ही बीपी, मधुमेह आदि से पीड़ित हैं, तो उन्हें नियमित रूप से जांच करानी चाहिए। दो विशेष टीके भी लगवा लें तो ठीक रहेगा। आजकल, इन्फ्लूएंजा का टीका आता है। इसे हर साल लगाया जा सकता है।  टिटनेस की वैक्सीन दस साल के अंतराल पर लगवानी चाहिए। 

चूंकि बुढ़ापे में महिलाओं में स्तन कैंसर का खतरा 25 प्रतिशत बढ़ जाता है। बड़ी उम्र की महिलाओं को भी अपनी मैमोग्राफी करवानी चाहिए और अपने स्तनों की जांच स्वयं ही कर लेनी चाहिए और यह काम नियमित रूप से करना चाहिए। आजकल पीएसए नामक रक्त परीक्षण द्वारा प्रोस्टेट कैंसर की संभावना का पता लगाने का चलन है। अगर डॉक्टर को लगता है तो इसकी जांच करवाएं।

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