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आखिर क्या है दि ग्रेट रेजिग्नेशन ? आ सकती है सबसे बड़ी आर्थिक आपदा

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दुनियाभर में आज कल एक नया ट्रेंड चल रहा है, नौकरी छोड़ने का ट्रेंड। लोग अपनी नौकरी से इस्तीफा दे रहे है और अपनी बने हुए करियर के बीच नौकरियां छोड़ रहे है। ऐसा नहीं है कि लोग संतुष्ट नहीं है इसलिए नौकरी छोड़ रहे है बल्कि हर उम्र के और हर रैंक के कामगार ऐसा कर रहे है। अभी कुछ समय पहले ही कोरोना की वज़ह से लगभग सब कुछ बंद सा हो गया था , लोगों को कंपनियों द्वारा नौकरियों से निकाला गया था। जो लोग सालों से काम कर रहे थे उन्हें भी एक झटके में अपनी नौकरी खोनी पड़ी थी। उस दौरान लोग रोज़गार के लिए तरस से गए थे हालांकि अब हालात बेहतर है और कंपनियां खुल रही है , व्यवस्था वापस पटरी पर आ रही है। नई सम्भावनाएं और रोजगार के अवसर बन रहे है। कम्पनियां वापस बिजनेस को महामारी से पहले वाली लय में लाना चाहती है, वो हर प्रयत्न कर रहीं है कि प्रशिक्षित लोगों की भर्ती करें लेकिन अब उन्हें ऐसे लोग नहीं मिल रहे है। बात बस इतनी नहीं है , समस्या है कि जो लोग काम कर रहे है वो भी नौकरियों को छोड़ रहे है और इस्तीफा दे रहे है। रोज़गार को लेकर प्रशिक्षित लोगों के मन से डर निकल रहा है जिसके चलते कंपनियों को परेशानी हो रही है। इस पूरी समस्या को दि ग्रेट रेजिग्नेशन बोलते है।


क्या है दि ग्रेट रेजिग्नेशन ?


इस शब्द का प्रयोग सबसे ज़्यादा हुआ 2019 में जब टेक्सास के एक प्रोफेसर एंटनी क्लाज ने इस शब्द को इस्तेमाल करते हुए कहा कि आने वाले समय में लाखों से ज़्यादा लोग अपनी नौकरियां छोड़ेंगे। ये भविष्यवाणी आज सच साबित होती दिख रही है। इस साल अगस्त के महीने में अमेरिका में 43 लाख लोगों ने अपनी नौकरी छोड़ी , इस समय अमेरिका में नौकरी के लिए एक करोड़ पद खाली है और 51 फ़ीसद कम्पनियां बिना पर्याप्त स्टॉफ के ही चल रही है।

पूरे विश्व पर पड़ रहा असर

ये आंकड़े तो केवल अमेरिका के थे , बता दें कि ऐसे हालात कई देशों में देखने को मिल रहे है। ऑस्ट्रेलिया , यूरोप और एशिया के कई देश भी इसी संकट से झूझ रहे है। विशेषज्ञ कहते हैं कि ज़ल्द ही विश्व का हर देश में ये समस्या देखने को मिलेगी।

दि ग्रेट रेजिग्नेशन की वज़ह

इसकी कई वज़ह है पर सबसे बड़ी वज़ह है कोरोना जैसी महामारी का असर। कोरोना के कारण लोगों की प्राथमिकता में बदलाव आया, लोगों को 9 से 5 वाली नौकरी के बजाय घर से आराम में काम करना पसंद आने लगा। कोरोना ने लोगों को परिवार के साथ समय बिताने का मौका दिया और अब लोग इसे ही न्यू नोर्मल मानते है और ऐसे ही रहना चाहते है। सिर्फ इतना ही नहीं एक वज़ह ये भी है कि कोरोना के समय में कंपनियों का कर्मचारियों की तरफ व्यवहार। कंपनियों ने भारी संख्या में लोगों को नौकरियों से निकाला और लॉयल्टी न देखते हुए भी सालों से काम करते आए वर्कर्स को भी नौकरी से हाथ धोना पड़ा। कई जग़ह पर काम करने के बावजूद वेतन में कटौती की गई और तो और बोनस भी हटाया गया जिससे न सिर्फ लोगों का कंपनी की तरफ़ जुड़ाव कम हुआ बल्कि उनके वर्क मोटिव पर भी असर हुआ। कोरोना में भारी संख्या में बिज़नेस बंद हुए, सारी सुविधाएं भी बंद कर दी गई थी औऱ अब जब वापस चीज़े नॉर्मल हो रही है तो कंपनी बेहतर वर्क सिक्योरटी और सुविधाओं की गारेंटी लेकर लोगों को बुलाना चाहती है लेकिन उनकी छवि पहले ही ख़राब हो चुकी है। और अनुभवी लोग अब उन कंपनियों की ओर रुख नहीं करना चाहते और तो औऱ वहाँ काम कर रहे लोग भी अब कंपनियां छोड़ रहे है।

काम का है अत्यधिक प्रेशर

महामारी के दौरान बिगड़े हालात को वापस पटरी पर लाना आसान नहीं है। महामारी के दौरान स्टॉफ कम था और काम भी लेकिन अब एक दम से काम बढ़ा है और स्टॉफ को पूरा करने में समय लग रहा है जिसकी वज़ह सड़ मौजूद लोगों पर वर्क प्रेशर बहुत ज़्यादा है। ये भी एक वज़ह है कि लोग नौकरियां छोड़ रहें है।

कंपनियों को सबक सिखा सकता है ये क़दम

उम्मीद जताई जा रही है कि दि ग्रेट रेजिग्नेशन कंपनी और कर्मचारियों के बीच रिश्तों को सुधरेगा। कंपनियों को लगे झटके से उन्हें चीज़े समझ आएंगी , कंपनियां बिजनेस में लाभ के साथ साथ अपने वर्कर्स के लाभ का सोचना भी शुरू करेंगी। अब वर्कर्स मशीन नहीं बल्कि इंसान की तरह ही देखें जाएंगे। विशेयज्ञ मानते है कि दि ग्रेट रेजिग्नेशन एक गंभीर आर्थिक संकट की ओर इशारा कर रहा है लेकिन यदि कंपनियां और बिजनेस फर्म चाहें तो वो अपनी कमियां दूर कर सकते है जिससे इस संकट को टाला जा सकेगा। 


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