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13 साल से न्याय की उम्मीद में मजदूरों का धरना...।

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जनता वोट देकर सरकार इसलिए चुनती है कि वो उनकी समस्यों का समाधान कर सकें। जीवन जीने की शैली को आसान बना सकें। मजदूरी करने वाले,गरीबी में जीने वाले तबकें की आवाज को सुन सकें। 
लेकिन राजस्थान की राजधानी जयपुर जहां राज्य की सरकार रहती है उसकी नाक के नीचे 1558 मजदूर ऐसे भी है जो 4628 दिन (13 साल) से न्याय के इंतजार में बैठे है। जिनकी सरकार सुनना नही चाहती।
ये मजदूर ना तो कोई सड़कें जाम कर रहे है ना रेल की पटरियां उखाड़ रहे है ना कोई हिंसा कर रहे है ये अपना आदोंलन अहिंसा,और लोकतांत्रिक तरीके से कर रहे है। शायद एक यही वजह है कि सरकार अभी भी इनको न्याय नही दिला पाई।


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सरकार और विपक्ष ससंद और विधानसभा में एक दुसरे पर चिल्ला-चिल्ला कर जनता का पैसा बर्बाद कर सकती है लेकिन किसी जरूरत मंद को न्याय नही दे सकती। मजदूरों को कुछ मिलता है तो वो है कोर्ट की तारीख...
30 सितंबर 2000 को राजस्थान सरकार ने जयपुर मैटल्स एण्ड इलेक्टिकल्स लिमिटेड को अव्यवस्थाओं के चलते बंद कर दिया था। लेकिन तब तक भी मजदूरों को 13 माह की तनख्वाह नही मिली थी। 18 साल में बार-बार सरकार बदली लेकिन कोई भी सरकार मजदूरों को न्याय नही दिला सकी।
एक मजदूर ने आत्मदाह कर दिया, कई ने आत्महत्या कर ली, कुछ पागल हो गयें...जो बचे है उनमें से अधिकतर मजदूर रिक्शा चलाकर अपना परिवार का पेट भर रहे है।
जयपुर मैटल्स और इलेक्टिकल्स लिमिटेड के मजदूर 11 नंवबर 2005 से अपनी मागों को लेकर धरना दे रहे है। 24 जुलाई 2007 को वसुंधरा सरकार से एक समझोता हुआ जिसमें मजदूरों के लिए 68.35 लाख का बजट बनाया। नौकरी की व्यवस्था हुई। सरकार ने इन सबके लिए एक प्राइवेट कंपनी को आमंत्रित किया। लेकिन 2008 में सरकार बदल गई और इस समझौते को रद्द कर दिया। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने याचिका रद्द कर दी और कहा कि राजस्थान उच्च न्यायालय में अपील दायर करें।
मजदूर तब से न्यायालय से ही न्याय की उम्मीद लगाये बैठें है।लेकिन अभी भी उनका इंतजार खत्म नही हुआ है।
मजदूरों को ऐसे कानून का इंतजार है जो उन्हें सिर्फ न्याय दिला सकें।
जयपुर मैटल्स और इलेक्टिकल्स मजदूर संघ की मांग है कि समझौते के तहत सरकार 68.35 लाख करोड़ रूपये की राशि 9 फीसदी ब्याज के साथ,और मजदूरों के परिवार से एक व्यक्ति को नौकरी दें।
राजस्थान उच्च न्यायालय में अगली सुनवाई 8 अगस्त को है। और मजदूरों को पूरी उम्मीद है कि इस बार निर्णय आ जाएगा।

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