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मां बनने की सही उम्र कौन सी है, और प्री-मैच्योर डिलीवरी के क्या है खतरे?

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भारत में पुरुषों के लिए शादी की न्यूनतम उम्र 21 वर्ष, जबकि महिलाओं के लिए 18 वर्ष हुआ करती थी. अब महिलाओं के लिए भी शादी की न्यूनतम उम्र 21 वर्ष वाला विधेयक पारित किया जा चुका है. शादी के लिए सही उम्र क्या होती है, इस सवाल पर तो खूब चर्चा होती रही है, लेकिन महिलाओं के लिए मां बनने की सही उम्र क्या है, इसको लेकर अपेक्षाकृत कम चर्चा होती है. सामान्यत: शादी होने के एक से दो सालों में दंपती फैमिली प्लानिंग कर लेते हैं. लेकिन वर्किंग वुमन  के लिए इसमें थोड़ी दिक्कत आती है. इस फैसले में पति या पत्नी दोनों की भूमिका रहती है।


कई बार करियर बनाने की चाह में या फिर अन्य प्रोफेशनल कारणों से महिलाएं फैमिली प्लानिंग में देरी करती हैं. लेकिन डॉक्टर्स का कहना है कि यदि म​हिलाएं ज्यादा देर करती हैं तो यह परेशानी बढ़ा सकता है. तो सवाल यही है कि मां बनने की सही उम्र आखिर क्या है? जानिए इस पर महिला डॉक्टर्स क्या कहती है?


क्या है मां बनने की सही उम्र?

डॉक्टर्स का कहना है कि मां बनने की सही उम्र 21 से 30 वर्ष के बीच की है. ‘गुंजन आईवीएफ वर्ल्ड’ की फाउंडर डॉ गुंजन गुप्ता कहती हैं कि करियर बनाने की चाह में अगर आप फैमिली प्लानिंग करने में बहुत देरी कर रहे हों, तो यह गलत है. आप सतर्क हों जाएं. कारण कि 30 साल की उम्र के बाद महिलाओं को मां बनने में दिक्कतें आ सकती हैं.


वह कहती हैं कि मां बनने के लिए महिलाएं अगर 35 साल या उससे ज्यादा उम्र का चयन करती हैं तो ऐसी स्थिति में बच्चे में अनुवांशिक गुण असामान्य होने की आशंका बढ़ जाती है. वहीं अपरिपक्व यानी कम उम्र में मां बनना और ज्यादा खतरनाक हो सकता है.


प्री-मैच्योर डिलीवरी के खतरे

डॉ गुंजन कहती हैं कि 20 साल से कम उम्र में मां बनने पर दिक्कतें हो सकती हैं. 20 साल से कम उम्र में बच्चे पैदा करने पर बच्चे की ग्रोथ कम हो सकती है. ऐसी स्थिति में बच्चा समय से पहले भी पैदा हो सकता है. इसे प्री-मैच्योर डिलीवरी कहते हैं. ऐसी स्थिति में डिलीवरी के दौरान पोस्टपार्टम हेम्रेज (PPH) का भी हाई रिस्क होता है जो कि कई बार जानलेवा भी हो सकता है. डॉ गुंजन कहती हैं कि मां बनने की सबसे अच्छी उम्र 21 से 30 वर्ष के बीच है.


एंटी मूलरियन हॉर्मोन की भूमिका

फर्टिलिटी एक्सपर्ट डॉक्टर मीनाक्षी आर्या ने बताया कि महिलाओं के शरीर में एएमएच (एंटी मूलरियन हॉर्मोन) नाम का एक हॉर्मोन होता है. यह उस महिला के अंडे बनाने की क्षमता को दर्शाता है. उम्र बढ़ने के साथ शरीर में एएमएच हॉर्मोन की मात्रा कम हो जाती है और 30 की उम्र के बाद तो यह हॉर्मोन तेजी से कम होने लगता है.


अगर इस हॉर्मोन की मात्रा कम हो गई है तो इसका मतलब है कि शरीर में अंडे बनने कम हो गए हैं. एक लड़की जब पैदा होती है तो उसके शरीर में लाखों अंडे होते हैं. 30 की उम्र तक आते आते यह केवल कुछ लाख तक ही रह जाते हैं, जबकि 40 की उम्र तक ये अंडे काफी कम या लगभग खत्म हो जाते हैं.


हाई ब्लड प्रेशर या डायबिटीज का खतरा

एक अन्य एक्सपर्ट डॉक्टर गरिमा शर्मा कहती हैं कि 30 साल से ज्यादा उम्र होने पर अगर डिलीवरी होती है तो बच्चे में अनुवांशिक गुण असामान्य होने की आशंका बढ़ जाती है. उम्र बढ़ने के साथ ही अन्य बीमारियों के खतरे भी होते हैं. 30 के बाद हाई ब्लड प्रेशर और डायबिटीज (मधुमेह) जैसी बीमारियों के रिस्क बढ़ने लगते हैं. इसके कारण प्रेग्नेंट होने में दिक्कतें आ सकती हैं.


इन परिस्थितियों में अगर कोई महिला प्रेग्नेंट है तो बढ़े हुए हाई ब्लड प्रेशर या डायबिटीज से गर्भपात का खतरा बहुत बढ़ जाता है. ऐसे में प्री टर्म बर्थ की भी आशंका रहती है. इसलिए महिलाओं को फैमिली प्लानिंग के लिए 21 से 30 वर्ष के बीच की उम्र तय रखनी चाहिए.

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