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6 अगस्त 2019 से सुप्रीम कोर्ट में
अयोध्या मामले पर शुरू हुई सुनवाई पुरी हो चुकी है। सुप्रीम कोर्ट ने 40 दिनो तक चले सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है। और ये उम्मीद जताई
जा रही है कि 15 नंवबर तक सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला सुना
सकता है।
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगाई अगले महिने की 17 तारीख को अपने पद से सेवानिर्वित हो रहे है और उम्मीद जताई जा रही है कि रिटायर होने से पहले चीफ जस्टिस रंजन गोगाई अयोध्या बाबरी मस्जिद केस पर निर्णय दे सकते है।
राम मंदिर का मुद्दा कई वर्षों से चल रहा है इसलिए शायद पुरा मुद्दा पता ना है इसलिए आज हमने अपने दर्शकों के लिए एक स्पेशल रिपोर्ट तैयार की है। जिसमें हम आपको अयोध्या बाबरी मस्जिद केस की पुरी जानकारी देगें।
साल 1813 में अग्रेजों के जमाने में हिंदू संगठनों ने पहली बार यह दावा किया था कि वर्ष 1526 में जब बाबर आया तो उसने राम मंदिर को तुड़वाकर मस्जिद का निर्माण कराया था। इसीलिए उसी के नाम पर मस्जिद को बाबरी मस्जिद नाम से जाना गया। 1859 में अंग्रेजों ने इस विवादित जगह पर तार की बाड़ बनवाई थी।
1885 में पहली बार महंत रघूबर दास ने ब्रिट्रिश अदालत से मंदिर बनाने की अनुमति मांगी। साल 1934 में विवादित क्षेत्र पर हिंसा हुई। पहली बार विवादित हिस्सा तोडा गया। ब्रिट्रिशष सरकार ने इसकी मरम्मत करवाई। 23 दिंसबर 1949 को हिंदुओं ने रामलला की मूर्ति रखी और पूजा शुरू की । इसके बाद मुस्लिम पक्ष ने वंहा नमाज पढना बंद कर दिया और अदालत का दरवाजा खटखटाया।
1959 में निर्मोही अखाड़ा ने विवादित स्थल में दखल की मांग की तो उत्तर प्रदेश सुन्नी वफ्क बोर्ड ने बाबरी मस्जिद के मालिकाना हक के लिए अदालत में मुकदमा दायर किया। साल 1984 में विश्व हिंदू परिषद् ने ताले खोलने, राम जन्मस्थान को स्वतंत्र कराने और विशाल मंदिर निर्माण के लिए आंदोलन शुरू किया, इसे लेकर देश में अलग-अलग जगहों पर प्रर्दशन हुए। भारतीय जनता पाटी ने भी हिंदुओं से मुद्दे को जोड़ते हुए संघर्ष शुरू किया।
कोर्ट में चल रहे मामले के दौरान साल 1986 में फैजाबाद जिला न्यायाधीश की ओर से पूजा की इजाजत दी गई तब इसके ताले दोबारा खोले गए। हालांकि इससे मुस्लिम पक्ष नाराज हो गया और उसने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी गठित करने का फैसला लिया।
इसके बाद साल 1992 में 6 दिसंबर को कारसेवकों ने भारी संख्या में अयोध्या पहुंचकर मस्जिद का ढांचा ढहा दिया। इस दौरान हिंसा हुई और अस्थाई राम मंदिर का निर्माण किया गया।
साल 2002 में अयोध्या के विवादित स्थल पर मालिकाना हक को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने सुनवाई शुरू की। 2003 में हाईकोर्ट ने निर्देश पर पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने विवादित स्थल पर खुदाई की। विभाग ने दावा किया कि मस्जिद की नीचे मंदिर होने के प्रमाण मिले है।
वर्ष 2011 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने विवादित क्षेत्र को रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा, सुन्नी वक्फ बोर्ड को बराबर तीन हिस्सों में बांटने का फैसला दिया। फरवरी 2011 में उच्च न्यायालय के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई।
मई 2011 में सुप्रीम कोर्ट की 2 सदस्यीय बेंच में सुनवाई शुरू, फिर ये मामला सुप्रीम कोर्ट में चलता रहा, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामलें पर मध्यस्थता की पेशकश की और जो असफल रही, इसके बाद इसी साल 6 अगस्त 2019 से सुप्रीम कोर्ट ने रोज सुनवाई शुरू करने का फैसला किया। जो 16 अक्टूबर को पुरी हो गई।
अब तक हुई सुनवाई के दौरान हिंदु पक्ष ने कुरान और बाबरनामा का अध्ययन किया, जबकि मुस्लिम पक्षकारों ने रामचरित मानस, स्कंद पुराण समेत कई हिंदू ग्रंथो का बारीकी से अध्ययन किया। मुस्लिम पक्ष ने इस दौरान करीब 700 किताबें खंगाली और 10 लाख रूपए से ज्यादा की रकम किताबें खरीदने पर खर्च की वही 50 वकीलों की टीम दस्तावेज खंगालती रही।
हिंदु पक्ष के वकीलों ने सुनवाई के दौरान 20-22 घंटेतक लगातार काम किया। केवल शनिवार और रविवार का दिन ही ऐसा रहा जब वे चार घंटे की नींद ले पाते थे। साथ ही मुस्लिम शासकों के इतिहास को पढ़ा। इस ऐतिहासिक मुकदमें की सुनवाई के दौरान हिंदू पक्षकारों ने करीब 7.5 लाख और मुस्लिम पक्षकारों ने 5 लाख से ज्यादा पन्नों की फोटोकॉपी कराई।
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