कुछ अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्ट्स दावा कर रही हैं कि अमेरिका भी इस सूची में शामिल है। इस संबंध में एक नोटिस नई दिल्ली में चीन के दूतावास के बाहर भी रखा गया है, जिसमें यह स्पष्ट रूप से लिखा है कि दूतावास उन लोगों के लिए वीजा प्राप्त करने में मदद करेगा जो चीन जाना चाहते हैं, जिन्होंने कोरोना वायरस के खिलाफ एक चीनी टीका लिया है और टीकाकरण का प्रमाण पत्र प्राप्त किया है।
बीजिंग में, चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता शाओ लिहियन ने कहा कि कई देशों ने कहा है कि अंतरराष्ट्रीय यात्राओं के लिए वैक्सीन को अनिवार्य किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि चीन ने यह प्रस्ताव चीनी टीकों की सुरक्षा और गुणवत्ता के गहन मूल्यांकन के बाद ही दिया है। उन्होंने कहा कि इस कदम का चीनी टीकों की स्वीकार्यता बढ़ाने से कोई लेना-देना नहीं है।
चीन ने अब तक देश के भीतर उपयोग के लिए पांच टीकों को हरी झंडी दे दी है, लेकिन उनमें से किसी को भी अब तक विश्व स्वास्थ्य संगठन से स्वीकृति नहीं मिली है। हालांकि, चीन का दावा है कि 60 से अधिक देश चीनी टीकों का उपयोग कर रहे हैं। भारत ने भी चीन में बने किसी भी वैक्सीन को स्वीकार नहीं किया है।
अब तक देश में केवल दो टीके उपलब्ध हैं - ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्राजेनेका का टीका, जिसे सीरम इंस्टिट्यूट कोविशील्ड के नाम से बना रहा है और भारत में ही विकसित हुई आईसीएमआर और भारत बायोटेक की कोवैक्सिन।
चीन के इस कदम के कारण कोई भी भारतीय नागरिक प्रभावी रूप से चीन का दौरा नहीं कर पाएगा और संभव है कि यह स्थिति दोनों देशों के बीच नए विवाद का रूप ले सकती है। लेकिन भारत सरकार ने अभी तक चीन के इस कदम पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।
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