किसान बुरी तरह से कर्ज में दबा है, लेकिन उसे कर्ज से मुक्त नहीं किया जा रहा, जबकि उसे एक नया ऋण दिया जाएगा। 9 करोड़ किसान संकट में हैं, फिर भी दिल्ली में बैठी सरकार किसानों से बात करने को तैयार नहीं है।
किसान कह रहा है कि उसे अपनी उपज का सही मूल्य नहीं मिल रहा है, उसके लिए किसी भी सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा का कोई मतलब नहीं है, लेकिन सरकार कह रही है कि वह न्यूनतम समर्थन मूल्य का विस्तार नहीं करेगी।
वह बिजली बिल से डरा हुआ है, लेकिन सरकार बिजली के दाम बढ़ा रही है। उर्वरकों और कीटनाशकों की कीमतें भी उतार-चढ़ाव पर हैं। जो भी कदम उठाए जाने चाहिए, हर स्तर पर सरकार को कंसॉलिडेटेड फंड (सरकार के खजाने) को रियायत के रूप में इस्तेमाल करना चाहिए क्योंकि कृषि उपज की कीमतें बढ़ने से भी रोकना है और लागत भी कम रखनी है।
बहस इस बात पर नहीं है कि सरकार जो कानून लेकर आयी है वो सही है या गलत...कानून भले ही सही हो सकते है लेकिन किसानों की समस्या कभी कम नहीं हो सकती, सरकार को कानून को लेकर इतना ही भरोसा है तो किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर कानून क्यों नहीं बना देती जिससे सारा मसला ही खत्म हो जाए लेकिन सरकार जानती है एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) आज नहीं तो कल खत्म होनी ही है।
ये बात किसान अच्छे से समझते भी है इसलिए वे चार महिनों से प्रर्दशन कर रहे है लेकिन पहले से ही गरीब किसान अगर प्रर्दशन पर बैठा रहा तो वो अपने और अपने परिवार का पेट भरने का इंतजाम कहां से करेगा।
इसलिए अब आंदोलन कर रहे किसानों की संख्या में भी कमी आयी है लेकिन ये सरकार है कि अपनी जिद्द पर अड़ी है और किसानों की सुध नहीं ले रही। उन्हें भी भारत बंद करने में कोई मजा थोड़ी आता है जिसमें भी उन्हें समर्थन मिलना कम होता जा रहा है।
ऐसे तो अन्नदाता किसान के अच्छे दिन कैसे आएंगे मोदी जी, 2022 तक आय दोगुनी करने का वादा किया था वो समय भी आ जाएगा लेकिन ना किसानों की आय दोगुनी होती दिख रही है और ना ही किसानों के अच्छे दिन आते दिख रहे है।
किसानों की आय है ही कहां...वो अपने खेत से परिवार के लिए दो वक्त का खाना जुटा ले ये ही बहुत है किस आय को दोगूनी करने की बात करते है आप... और किसानों का भला-भूरा सोचते तो उनको 4 महिने तक यहां तक कि कड़कड़ाती ठंड में भी सड़कों पर ना बैठना पड़ता।
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