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देश और दुनिया में बिजली संकट की क्या है असली वजह ? जानें

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दुनिया के साथ-साथ भारत में कोल क्राइसिस गंभीर हो रहा है। साथ ही बिजली उत्पादन कंपनियों का बिजली डिस्ट्रीब्यूशन कंपनियों पर बकाया भी बढ़ रहा है। बिजली वितरण कंपनियों (DISCOM) पर बिजली उत्पादन कंपनियों (GenCo) का बकाया सालाना आधार पर अक्टूबर में एक साल पहले की तुलना में 3.3 प्रतिशत बढ़कर 1,16,127 करोड़ रुपए पर पहुंच गया। 

अक्टूबर, 2020 तक डिस्कॉम पर बिजली वितरण कंपनियों का बकाया 1,12,384 करोड़ रुपए था। पेमेंट रैटिफिकेशन एंड एनालिसिस इन पावर प्रोक्यूरमेंट फॉर ब्रिंगिंग ट्रांसपैरेंसी इन इन्वॉयसिंग ऑफ जेनरेशन (PRAAPTI) पोर्टल से यह जानकारी मिली है।


डिस्कॉम और जेनको की समस्या से पहले कोल क्राइसिस के बारे में विस्तार से समझते हैं। आपके मन में यह सवाल जरूर उठ रहा होगा कि ऐसा क्या हुआ कि कोयले का संकट अचानक से इतना गंभीर हो गया है। दरअसल कोरोना की दूसरी लहर के बाद मैन्युफैक्चरिंग एक्टिविटी में बहुत जबरदस्त उछाल आया है। मैन्युफैक्चरिंग एक्टिविटी में आई तेजी के कारण पावर डिमांड भी काफी बढ़ गई है। इंडिया रेटिंग्स के एसोसिएट डायरेक्टर नितिन बंसल का कहना है कि इस बात की उम्मीद किसी ने नहीं की थी कि कोरोना महामारी के बाद इंडस्ट्रियल डिमांड में इतनी तेजी से रिकवरी होगी।

पावर कंपनियों ने इसलिए इन्वेन्ट्री पर नहीं दिया ध्यान

यही वजह है कि पावर कंपनियों ने इन्वेन्ट्री पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया, और अब स्टॉक नहीं होने से परेशान हैं। फेडरेशन ऑफ इंडियन मिनरल्स इंडस्ट्री ने कोल मिनिस्ट्री से साफ-साफ कहा है कि कोल क्राइसिस के कारण एल्युमिनियम और स्टील इंडस्ट्री को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। सीएनबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक 90 कोल पावर प्लांट के पास केवल 5 दिनों का स्टॉक बचा हुआ है। 

8 अक्टूबर को 8942 मेगावाट बिजली उत्पादन में कमी दर्ज की गई। नियम के मुताबिक, अगर किसी पावर प्लांट के पास कोयले का स्टॉक घटकर 7-3 दिनों के बीच पहुंच जाता है तो इसे क्रिटिकल और सुपर क्रिटिकल सिचुएशन माना जाता है। सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी यानी CEA की रिपोर्ट के मुताबिक, 110 पावर प्लांट क्रिटिकल लेवल पर है।

चीन और भारत दोनों ने आयात बढ़ाया, इससे कीमत में तेजी

भारत बड़े पैमाने पर कोयले का आयात भी करता है। आयातित कोयले को लेकर समस्या ये है कि पड़ोसी देश चीन की अर्थव्यवस्था भी कोरोना संकट से उभरी है। वहां भी इंडस्ट्रियल एक्टिविटी में तेजी आई है, जिसके कारण कोयले की मांग बढ़ी है। दूसरी तरफ जिनपिंग सरकार ने प्रदूषण को ध्यान में रखते हुए कोयले के उत्पादन को लेकर नियम कड़े कर दिए हैं। ऐसे में वहां की पावर कंपनियां भी बड़े पैमाने पर कोयला आयात कर रही हैं, इससे ग्लोबल डिमांड बढ़ी और कीमत में तेजी आई है।

इंटरनेशनल मार्केट में अभी रेट में तेजी जारी रहेगी

ऐसे में यह साफ है कि इंटरनेशनल मार्केट से चीन और भारत दोनों कोयले का आयात करेगा। इससे डिमांड बढ़ेगी, कॉम्पिटिशन बढ़ेगा और उसी हिसाब से रेट भी बढ़ेंगे। पावर मिनिस्टर राज कुमार सिंह ने इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में साफ-साफ कहा है कि भारत में कोयला संकट की समस्या अगले छह महीने तक बनी रहेगी।

अत्यधिक बारिश के कारण खदानों में पहुंचा पानी

डोमेस्टिक प्रोडक्शन और सप्लाई की बात करें तो देश के कई इलाकों में अत्यधिक वर्षा के कारण कोयला की आवाजाही प्रभावित होने से दिल्ली और पंजाब समेत कई राज्यों में बिजली संकट गहरा गया है। इस साल देश में कोयले का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ है, लेकिन अत्यधिक वर्षा ने कोयला खदानों से बिजली उत्पादन इकाइयों तक ईंधन की आवाजाही को खासा प्रभावित किया है। 

गुजरात, पंजाब, राजस्थान, दिल्ली और तमिलनाडु समेत कई राज्यों में बिजली उत्पादन पर इसका गहरा असर पड़ा है। कोयला संकट के कारण पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, झारखंड, बिहार और आंध्रप्रदेश में भी बिजली आपूर्ति प्रभावित हुई है।

कोयले का पर्याप्त भंडार, लेकिन पावर प्लांट तक पहुंचाना परेशानी

दूसरी तरफ कोयला मंत्रालय का कहना है कि देश में पर्याप्त कोयले का भंडार है और माल की लगातार भरपाई की जा रही है। 

कोयला मंत्रालय के एक शीर्ष अधिकारी ने बताया, “खदानों में लगभग चार करोड़ टन और बिजली संयंत्रों में 75 लाख टन का भंडार है। खदानों से बिजली संयंत्रों तक कोयला पहुंचना परेशानी रही है, क्योंकि अत्यधिक बारिश के कारण खदानों में पानी भर गया है। लेकिन अब इसे निपटाया जा रहा है और बिजली संयंत्रों को कोयला की आपूर्ति बढ़ रही है।

सितंबर में डिस्कॉम पर बकाया 1.12 लाख करोड़

अब बिजली उत्पादन करने वाली कंपनियों की वित्तीय हालत पर नजर डालें तो अक्टूबर में डिस्कॉम पर जेनको का बकाया सितंबर की तुलना में बढ़ा है। सितंबर में यह 1,12,815 करोड़ रुपए रहा था। बिजली उत्पादकों तथा डिस्कॉम के बीच बिजली खरीद लेनदेन में पारदर्शिता लाने के लिए प्राप्ति पोर्टल (PRAAPTI) मई, 2018 में शुरू किया गया था।

अक्टूबर, 2021 तक 45 दिन की मियाद या ग्रेस की अवधि के बाद भी डिस्कॉम पर कुल बकाया राशि 97,481 करोड़ रुपए थी। यह एक साल पहले 97,811 करोड़ रुपए थी। पोर्टल के ताजा आंकड़ों के अनुसार, सितंबर में डिस्कॉम पर कुल बकाया 96,316 करोड़ रुपए था।

45 दिनों के भीतर डिस्कॉम को करना होता है भुगतान

बिजली उत्पादक कंपनियां डिस्कॉम को बेची गई बिजली के बिल का भुगतान करने के लिए 45 दिन का समय देती हैं। उसके बाद यह राशि पुराने बकाये में जाती है। ज्यादातर ऐसे मामलों में बिजली उत्पादक दंडात्मक ब्याज वसूलते हैं। बिजली उत्पादक कंपनियों को राहत के लिए केंद्र ने एक अगस्त, 2019 से भुगतान सुरक्षा प्रणाली लागू है। इस व्यवस्था के तहत डिस्कॉम को बिजली आपूर्ति पाने के लिए साख पत्र देना होता है।

डिस्कॉम के लिए 1.2 लाख करोड़ का पैकेज

केंद्र सरकार ने बिजली वितरण कंपनियों को भी कुछ राहत दी है। कोविड-19 महामारी की वजह से डिस्कॉम को भुगतान में देरी के लिए दंडात्मक शुल्क को माफ कर दिया था। सरकार ने मई, 2020 में डिस्कॉम के लिए 90,000 करोड़ रुपए की नकदी डालने की योजना पेश की थी। 

इसके तहत बिजली वितरण कंपनियां पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन तथा आरईसी लिमिटेड से सस्ता कर्ज ले सकती हैं। बाद में सरकार ने इस पैकेज को बढ़ाकर 1.2 लाख करोड़ रुपए और उसके बाद 1.35 लाख करोड़ रुपए कर दिया।

इन राज्यों के डिस्कॉम का सबसे ज्यादा बकाया

आंकड़ों से पता चलता है कि राजस्थान, उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक,मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, झारखंड और तमिलनाडु की बिजली वितरण कंपनियों का उत्पादक कंपनियों के बकाये में सबसे अधिक हिस्सा है। 

भुगतान की मियाद की अवधि समाप्त होने के बाद अक्टूबर, 2021 तक डिस्कॉम पर कुल बकाया 97,481 करोड़ रुपए था। इसमें स्वतंत्र बिजली उत्पादकों का हिस्सा 53.25 प्रतिशत है। वहीं, केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम की जेनको का बकाया 26.69 प्रतिशत है।

निजी बिजली उत्पादकों का कितना बकाया

सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों में अकेले एनएलसी को ही डिस्कॉम से 5,047.45 करोड़ रुपए वसूलने हैं। एनटीपीसी का बकाया 3,974.25 करोड़ रुपए, दामोदर घाटी निगम का 2,261.22 करोड़ रुपए है। 

निजी बिजली उत्पादकों में अडाणी पावर का बकाया 25,717.97 करोड़ रुपए, बजाज समूह की ललितपुर पावर जेनरेशन कंपनी का 3,645.56 करोड़ रुपए है। वहीं गैर-परंपरागत ऊर्जा स्रोतों मसलन सौर और पवन ऊर्जा कंपनियों का बकाया 17,010.44 करोड़ रुपए है।



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1 comment:

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